আল কুরআনে বর্ণিত জান্নাত ও জাহান্নামের নামসমূহ
আল কুরআনে বর্ণিত জান্নাত ও জাহান্নামের নামসমূহ
মহান আল্লাহ তায়ালা তাঁর ইবাদতের জন্য মানুষ ও জিন জাতিকে সৃষ্টি করেন। আদম ও হাওয়া আ. কে সৃষ্টি করার পর তাদেরকে জান্নাতে বসবাস করার নির্দেশ দেন এবং বলেন তোমরা ঐ বৃক্ষের নিকটে যেওনা। তাহলে তোমরা জালেমদের অন্তর্ভূক্ত হয়ে যাবে। কিন্তু শয়তানের ধোকায় পড়ে তারা আল্লাহর আদেশ ভুল যান। অবশেষে তাদেরকে জান্নাত
থেকে বিতারিত হতে হয়। আদম আ. ও হাওয়া আ. এর মাধ্যমে পৃথিবীতে মানব বিস্তার শুরু হয়।
মানব সৃষ্টির উদ্দেশ্য সম্পর্কে মহান আল্লাহ বলেন,
وَ مَا خَلَقۡتُ الۡجِنَّ وَ الۡاِنۡسَ اِلَّا
لِیَعۡبُدُوۡنِ
আমি
জ্বিন ও মানবকে সৃষ্টি করেছি একমাত্র এ কারণে যে, তারা আমারই ‘ইবাদাত করবে।
( সুরা আয-যারিয়াত, আয়াত নং- 56 )
অত্র আয়াতের
আলোকে যারা আল্লাহর ইবাদত করবে , তাদের পুরস্কার হলো পরকালে জান্নাত। আর যারা তাঁর
ইবাদত করবে না, তাদের জন্য রয়েছে পরকালে জাহান্নাম।
কুরআন মাজিদের
বিভিন্ন স্থানে জান্নাত ও জাহান্নামের বর্ণনা রয়েছে। অত্র প্রবন্ধে সে সম্পর্কে আলোকপাত
করবো। ইনশা আল্লাহ
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Avjøvn Zvqvjv e‡jb,
وَ لَکُمۡ فِیۡهَا مَا تَشۡتَهِیۡۤ اَنۡفُسُکُمۡ
وَ لَکُمۡ فِیۡهَا مَا تَدَّعُوۡنَ
আর
সেখানে (অর্থাৎ জান্নাতে) তোমাদের জন্য তোমাদের মন যা চায় তা-ই আছে; তোমরা যে জিনিসের আকাঙ্ক্ষা কর, তোমাদের জন্য সেখানে তা-ই আছে
( myiv nv-gxg Avm-mvR`vn, AvqvZ bs- 31 )
Rvbœv‡Z Kviv hv‡e ?
Avjøvn Zvqvjv e‡jb,
وَ بَشِّرِ الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا وَ عَمِلُوا
الصّٰلِحٰتِ اَنَّ لَهُمۡ جَنّٰتٍ تَجۡرِیۡ مِنۡ تَحۡتِهَا الۡاَنۡهٰرُ ؕ
যারা
ঈমান আনে ও সৎকর্ম করে তাদেরকে সুসংবাদ দাও যে, তাদের জন্য আছে জান্নাত, যার নিম্নদেশে নদীসমূহ
প্রবাহিত।
( myiv Avj-evKviv, AvqvZ bs- 25 )
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1.
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2.
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3.
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4.
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5.
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6.
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8.
RvbœvZz Av`b|
Avj-KziAv‡b
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v
RvbœvZzj wdi`vDm
Avjøvn Zvqvjv myiv Avj-Kvnv‡di 107 bs
Avqv‡Z e‡jb,
اِنَّ الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا وَ عَمِلُوا
الصّٰلِحٰتِ کَانَتۡ لَهُمۡ جَنّٰتُ الۡفِرۡدَوۡسِ نُزُلًا
যারা ঈমান আনে আর সৎকাজ করে তাদের আপ্যায়নের জন্য আছে
ফিরদাউসের বাগান।
v
RvbœvZzj gvIqv
( gvIqv A_©- evm¯’vb, cÖK…Z AvkÖq¯’j )
Avjøvn Zvqvjv myiv Avm&-mvR`vn 19 bs Avqv‡Z e‡jb,
اَمَّا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا وَ عَمِلُوا
الصّٰلِحٰتِ فَلَهُمۡ جَنّٰتُ الۡمَاۡوٰی ۫ نُزُلًۢا بِمَا کَانُوۡا یَعۡمَلُوۡنَ
যারা
বিশ্বাস করে সৎকাজ করে, তাদের
কৃতকর্মের ফলস্বরূপ তাদের আপ্যায়নের জন্য জান্নাত হবে তাদের বাসস্থান।
v
`viæj gvKvg
Avjøvn Zvqvjv myiv Avj-dvwZi 35 bs Avqv‡Z e‡jb,
الَّذِیۡۤ اَحَلَّنَا دَارَ الۡمُقَامَۃِ مِنۡ
فَضۡلِهٖ ۚ لَا یَمَسُّنَا فِیۡهَا نَصَبٌ وَّ لَا یَمَسُّنَا فِیۡهَا لُغُوۡبٌ
যিনি নিজ অনুগ্রহে, আমাদেরকে স্থায়ী আবাস দান করেছেন; যেখানে আমাদেরকে
কোন প্রকার ক্লেশ স্পর্শ করে না এবং স্পর্শ করে না কোন প্রকার ক্লান্তি।’
v
`viæj Kvivi
Avjøvn Zvqvjv myiv Avj-gyÕwgb/ Avj-Mvwdi 39 bs Avqv‡Z
e‡jb,
یٰقَوۡمِ
اِنَّمَا هٰذِهِ الۡحَیٰوۃُ الدُّنۡیَا مَتَاعٌ ۫ وَّ اِنَّ الۡاٰخِرَۃَ هِیَ
دَارُ الۡقَرَارِ
হে আমার সম্প্রদায়! এ পার্থিব জীবন তো অস্থায়ী উপভোগের
বস্তু।[1] আর নিশ্চয় পরকাল
হচ্ছে চিরস্থায়ী আবাস।[2]
[1] যে জীবন মাত্র কয়েক দিনের এবং তাও আখেরাতের তুলনায় সকাল অথবা সন্ধ্যার একটি মুহূর্তের সমান।
[2] যার ধ্বংস ও বিনাশ নেই। সেখান থেকে অন্য কোথাও স্থানান্তর নেই। কেউ জান্নাতে যাক বা জাহান্নামে, উভয়ের জীবন হবে চিরন্তন জীবন। একটি জীবন হবে আরাম ও সুখের এবং অপরটি হবে দুর্দশা, আযাব ও দুঃখের। মৃত্যু না জান্নাতবাসীর আসবে, আর না জাহান্নামবাসীর।
v
`viæb bvBg
Avjøvn Zvqvjv myiv Avj-K¦jvg 34 bs Avqv‡Z e‡jb,
اِنَّ
لِلۡمُتَّقِیۡنَ عِنۡدَ رَبِّهِمۡ جَنّٰتِ النَّعِیۡمِ
আল্লাহভীরুদের জন্য তাদের প্রতিপালকের নিকট আছে নি‘মাতে
পরিপূর্ণ জান্নাত।
v
`viæj Lyj`
Avjøvn Zvqvjv myiv Avj-K¡d 34 bs Avqv‡Z e‡jb,
ادۡخُلُوۡهَا بِسَلٰمٍ ؕ ذٰلِکَ یَوۡمُ
الۡخُلُوۡدِ
তাদেরকে
বলা হবে, শান্তির সাথে তোমরা তাতে প্ৰবেশ কর;
এটা অনন্ত জীবনের দিন।
v
`viæm mvjvg
Avjøvn Zvqvjv myiv Bdbym Gi- 25 bs Avqv‡Z e‡jb,
وَ اللّٰهُ
یَدۡعُوۡۤا اِلٰی دَارِ السَّلٰمِ ؕ وَ یَهۡدِیۡ مَنۡ یَّشَآءُ اِلٰی صِرَاطٍ
مُّسۡتَقِیۡمٍ
আল্লাহ
(মানুষ)কে শান্তির আবাসের দিকে আহবান করেন এবং যাকে ইচ্ছা সরল পথ প্রদর্শন করেন।
v
RvbœvZz Av`b
Avjøvn Zvqvjv myiv bvnj Gi 31 bs Avqv‡Z e‡jb,
جَنّٰتُ عَدۡنٍ
یَّدۡخُلُوۡنَهَا تَجۡرِیۡ مِنۡ تَحۡتِهَا الۡاَنۡهٰرُ لَهُمۡ فِیۡهَا مَا
یَشَآءُوۡنَ ؕ کَذٰلِکَ یَجۡزِی اللّٰهُ الۡمُتَّقِیۡنَ
ওটা
স্থায়ী জান্নাত যাতে তারা প্রবেশ করবে; ওর নিম্নদেশে নদীসমূহ প্রবাহিত; তারা যা কিছু কামনা
করবে তাতে তাদের জন্য তাই থাকবে; এভাবেই আল্লাহ সাবধানীদেরকে
পুরস্কৃত করেন।
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Rvnvbœv‡gi weei‡Y Avjøvn Zvqvjv e‡jb,
اِنَّ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا بِاٰیٰتِنَا سَوۡفَ نُصۡلِیۡهِمۡ نَارًا ؕ کُلَّمَا نَضِجَتۡ جُلُوۡدُهُمۡ بَدَّلۡنٰهُمۡ جُلُوۡدًا غَیۡرَهَا لِیَذُوۡقُوا الۡعَذَابَ ؕ اِنَّ اللّٰهَ کَانَ عَزِیۡزًا حَکِیۡمًا
যারা
আমার আয়াতসমূহকে প্রত্যাখ্যান করে নিশ্চয়ই আমি তাদেরকে আগুনে দগ্ধ করব, যখন তাদের গায়ের চামড়া দগ্ধ হবে, আমি সেই চামড়াকে নতুন চামড়া দ্বারা বদলে দেব যেন তারা (শাস্তির পর) শাস্তি
ভোগ করে। আল্লাহ নিশ্চয়ই পরাক্রমশালী ও বিজ্ঞানময়।
( myiv Avb-wbmv, AvqvZ bs- 56 )
wZwb Av‡iv e‡jb,
فَالَّذِیۡنَ کَفَرُوۡا قُطِّعَتۡ لَهُمۡ ثِیَابٌ مِّنۡ نَّارٍ ؕ یُصَبُّ مِنۡ فَوۡقِ رُءُوۡسِهِمُ الۡحَمِیۡمُ ﴿ۚ۱۹﴾ یُصۡهَرُ بِهٖ مَا فِیۡ بُطُوۡنِهِمۡ وَ الۡجُلُوۡدُ ﴿ؕ۲۰﴾ وَ لَهُمۡ مَّقَامِعُ مِنۡ حَدِیۡدٍ کُلَّمَاۤ اَرَادُوۡۤا اَنۡ یَّخۡرُجُوۡا مِنۡهَا مِنۡ غَمٍّ اُعِیۡدُوۡا فِیۡهَا ٭ وَ ذُوۡقُوۡا عَذَابَ الۡحَرِیۡقِ ﴿۲۲﴾
তারা তাদের প্রতিপালক সম্বন্ধে বিতর্ক করে।
সুতরাং যারা অবিশ্বাস করে, তাদের জন্য প্রস্তুত করা হয়েছে আগুনের পোশাক;
তাদের মাথার উপর ঢেলে দেওয়া হবে ফুটন্ত পানি। যার ফলে তাদের উদরে যা
আছে তা এবং তাদের চর্ম বিগলিত করা হবে। আর তাদের জন্যে থাকবে লৌহনির্মিত
হাতুড়িসমূহ। যখনই তারা যন্ত্রণাকাতর হয়ে জাহান্নাম হতে বের হতে চাইবে, তখনই তাদেরকে ফিরিয়ে দেওয়া হবে; আর (তাদেরকে বলা হবে,) ‘আস্বাদ কর দহন-যন্ত্রণা।
( myiv Avj-nv¾, AvqvZ bs –
19-22 )
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mvZwU hv nvw`m Øviv cÖgvwYZ| Avj-KziAvb ewY©Z Rvnvbœv‡gi bvgmg~n n‡jv-
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Avjøvn Zvqvjv KziAvb gvwR‡`i myiv hygvi Gi 71,72 bs Avqv‡Z e‡jb,
وَ
سِیۡقَ الَّذِیۡنَ کَفَرُوۡۤا اِلٰی جَهَنَّمَ زُمَرًا ؕ حَتّٰۤی اِذَا
جَآءُوۡهَا فُتِحَتۡ اَبۡوَابُهَا وَ قَالَ لَهُمۡ خَزَنَتُهَاۤ اَلَمۡ
یَاۡتِکُمۡ رُسُلٌ مِّنۡکُمۡ یَتۡلُوۡنَ عَلَیۡکُمۡ اٰیٰتِ رَبِّکُمۡ وَ
یُنۡذِرُوۡنَکُمۡ لِقَآءَ یَوۡمِکُمۡ هٰذَا ؕ قَالُوۡا بَلٰی وَ لٰکِنۡ حَقَّتۡ
کَلِمَۃُ الۡعَذَابِ عَلَی الۡکٰفِرِیۡنَ ﴿۷۱﴾ قِیۡلَ ادۡخُلُوۡۤا اَبۡوَابَ
جَهَنَّمَ خٰلِدِیۡنَ فِیۡهَا ۚ فَبِئۡسَ مَثۡوَی الۡمُتَکَبِّرِیۡنَ
সত্যপ্রত্যাখ্যানকারীদেরকে জাহান্নামের দিকে দলে দলে তাড়িয়ে নিয়ে যাওয়া
হবে।[1] যখন ওরা জাহান্নামের
নিকট উপস্থিত হবে, তখন তার দরজা খুলে দেওয়া হবে[2] এবং জাহান্নামের রক্ষীরা ওদেরকে বলবে, ‘তোমাদের নিকট
কি তোমাদের মধ্য হতে রসূল আসেনি; যারা তোমাদের নিকট তোমাদের প্রতিপালকের আয়াত আবৃত্তি করত এবং এ দিনের
সাক্ষাৎ সম্বন্ধে তোমাদেরকে সতর্ক করত?’ ওরা বলবে, ‘অবশ্যই এসেছিল।[3] কিন্তু সত্যপ্রত্যাখ্যানকারীদের প্রতি শাস্তির
বাক্য বাস্তবায়িত হয়েছে।’ ওদেরকে বলা হবে, জাহান্নামে
স্থায়ীভাবে বাস করার জন্য তোমরা ওতে প্রবেশ কর। কত নিকৃষ্ট অহংকারীদের আবাসস্থল!
v
nvweqv
Avjøvn
Zvqvjv myiv K¡vwiqvn Gi 9, 10 I 11 bs Avqv‡Z e‡jb,
فَاُمُّهٗ
هَاوِیَۃٌ ؕ﴿۹﴾ وَ مَاۤ اَدۡرٰىکَ مَا هِیَهۡ ﴿ؕ۱۰﴾ نَارٌ حَامِیَۃٌ ﴿۱۱﴾
তার স্থান হবে হাবিয়াহ, তুমি কি জান তা কী?, তা অতি উত্তপ্ত অগ্নি।
v
Rvwng
Avjøvn
Zvqvjv myiv bvwhÕAvZ Gi 39 bs Avqv‡Z e‡jb,
فَاِنَّ
الۡجَحِیۡمَ هِیَ الۡمَاۡوٰی
জাহীম (জাহান্নাম)ই হবে তার আশ্রয়স্থল।
v
mvKvi
Avjøvn
Zvqvjv myiv gyÏvw”Qi Gi 26, 27 I 28 bs Avqv‡Z e‡jb,
سَاُصۡلِیۡهِ
سَقَرَ ﴿۲۶﴾ وَ مَاۤ اَدۡرٰىکَ مَا سَقَرُ ﴿ؕ۲۷﴾ لَا تُبۡقِیۡ وَ لَا
تَذَرُ ﴿ۚ۲۸﴾
আমি তাকে নিক্ষেপ করব সাক্বার (জাহান্নামে)।,
তুমি কি জান সাকার কি? , তা কাউকে জীবিতও রাখবে না, আর মৃত অবস্থায়ও ছেড়ে দেবে না।
v
mvBi
Avjøvn
Zvqvjv myiv g~jK Gi 11 bs Avqv‡Z e‡jb,
فَاعۡتَرَفُوۡا بِذَنۡۢبِهِمۡ ۚ فَسُحۡقًا لِّاَصۡحٰبِ
السَّعِیۡرِ ﴿۱۱﴾
তারা তাদের অপরাধ স্বীকার করবে।[1] সুতরাং জাহান্নামীরা (আল্লাহর রহমত হতে) দূর হোক![2]
[1] যার কারণে শাস্তির যোগ্য বিবেচিত হয়েছে; আর তা হল, কুফরী করা এবং নবীদেরকে মিথ্যা ভাবা।
[2] অর্থাৎ, তারা এখন আল্লাহ এবং তাঁর রহমত থেকে বহু দূরে সরে যাবে। কেউ কেউ বলেন, س ُحْقٌ ‘সুহ্ক্ব’ জাহান্নামের একটি উপত্যকার নাম।
v
ûZvgvn
Avjøvn
Zvqvjv myiv ûgvhvn Gi 4, 5 I 6 bs Avqv‡Z e‡jb,
کَلَّا
لَیُنۡۢبَذَنَّ فِی الۡحُطَمَۃِ ۫﴿ۖ۴﴾ وَ مَاۤ اَدۡرٰىکَ مَا الۡحُطَمَۃُ ؕ﴿۵﴾ نَارُ
اللّٰهِ الۡمُوۡقَدَۃُ ۙ﴿۶﴾
কখনও না, সে অবশ্যই নিক্ষিপ্ত হবে হুত্বামায়। , হুতামা কী, তা কি তুমি জান?, তা হল আল্লাহর প্রজ্বলিত অগ্নি।
v
jvhv
Avjøvn
Zvqvjv myiv gvÕAvwiR Gi 15 bs Avqv‡Z e‡jb,
کَلَّا
ؕ اِنَّهَا لَظٰی
না, কখনই নয়!
এটা তো লেলিহান অগ্নি।[1]
[1] অর্থাৎ, এটা হল জাহান্নাম। এখানে তার প্রখর উষ্ণতার কথা বর্ণিত হয়েছে।
Rvnvbœv‡g hLb Rvnvbœvgx‡`i‡K
wRÁvmv Kiv n‡e †h, †Zvgiv Rvnvbœv‡g G‡mQ †K‡bv ? ZLb Zviv Rvnvbœv‡g Avmvi PviwU
KviY ej‡e| hv Zviv Ki‡Zv bv|
hv Avjøvn Zvqvjv
myiv nv°vn Gi 42-47 bs Avqv‡Z eY©bv K‡i‡Qb|
wZwb e‡jb,
مَا
سَلَکَکُمۡ فِیۡ سَقَرَ ﴿۴۲﴾ قَالُوۡا لَمۡ نَکُ مِنَ الۡمُصَلِّیۡنَ ﴿ۙ۴۳﴾ وَ
لَمۡ نَکُ نُطۡعِمُ الۡمِسۡکِیۡنَ ﴿ۙ۴۴﴾ وَ کُنَّا نَخُوۡضُ مَعَ
الۡخَآئِضِیۡنَ ﴿ۙ۴۵﴾ وَ کُنَّا نُکَذِّبُ بِیَوۡمِ الدِّیۡنِ ﴿ۙ۴۶﴾ حَتّٰۤی
اَتٰىنَا الۡیَقِیۡنُ
তোমাদেরকে কিসে জাহান্নামে নিক্ষেপ করেছে? , তারা
বলবে,
আমরা সালাত আদায়কারীদের অন্তর্ভুক্ত ছিলাম না(১), আমরা অভাবগ্রস্তদেরকে অন্নদান করতাম না, এবং আমরা সমালোচনাকারীদের সাথে
সমালোচনায় নিমগ্ন থাকতাম, আমরা কর্মফল দিবসকে মিথ্যা মনে করতাম, পরিশেষে আমাদের
নিকট মৃত্যু আগমন করল।
(১) এর অর্থ হলো,
যেসব মানুষ আল্লাহর প্রতি ঈমান এনে সালাত ঠিকমত আদায় করেছে আমরা তাদের মধ্যে অন্তর্ভুক্ত ছিলাম না। [কুরতুবী]
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Avwgb|
সংকলক,
এইচ. এম. হুজ্জাতুল্লাহ
অধ্যায়ণরত,
ইবি, কুষ্টিয়া।
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